वांछित मन्त्र चुनें

म॒रुत्वाँ॑ इन्द्र वृष॒भो रणा॑य॒ पिबा॒ सोम॑मनुष्व॒धं मदा॑य। आ सि॑ञ्चस्व ज॒ठरे॒ मध्व॑ ऊ॒र्मिं त्वं राजा॑सि प्र॒दिवः॑ सु॒ताना॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

marutvām̐ indra vṛṣabho raṇāya pibā somam anuṣvadham madāya | ā siñcasva jaṭhare madhva ūrmiṁ tvaṁ rājāsi pradivaḥ sutānām ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒रुत्वा॑न्। इ॒न्द्र॒। वृ॒ष॒भः। रणा॑य। पिब॑। सोम॑म्। अ॒नु॒ऽस्व॒धम्। मदा॑य। आ। सि॒ञ्च॒स्व॒। ज॒ठरे॑। मध्वः॑। ऊ॒र्मिम्। त्वम्। राजा॑। अ॒सि॒। प्र॒ऽदिवः॑। सु॒ताना॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:47» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पाँच ऋचावाले सैंतालीसवें सूक्त का आरम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र में राजा के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य से युक्त (मरुत्वान्) श्रेष्ठ मनुष्यों से युक्त (वृषभः) बलवान् ! आप (रणाय) सङ्ग्राम के और (मदाय) आनन्द के लिये (अनुष्वधम्) अनुकूल स्वधा अन्न वर्त्तमान जिसमें ऐसे (सोमम्) श्रेष्ठ औषधी के रस का (पिब) पान करो और (जठरे) पेट में (मध्वः) मधुर की (ऊर्मिम्) लहर को (आ, सिञ्चस्व) सेचन करो जिससे (त्वम्) आप (प्रदिवः) अत्यन्त विद्या और विनय से प्रकाशित के (सुतानाम्) उत्पन्न हुए ऐश्वर्य आदिकों के (राजा) प्रकाशकर्त्ता (असि) हैं इससे ऐसा आचरण करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप जो विजय आरोग्य बल और अधिक अवस्था की इच्छा करें, तो ब्रह्मचर्य धनुर्वेदविद्या जितेन्द्रियत्व और नियमित आहार विहार को करिये ॥१॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र मरुत्वान् ! वृषभस्त्वं रणाय मदायानुष्वधं सोमं पिब। जठरे मध्व ऊर्मिमासिञ्चस्व यतस्त्वं प्रदिवः सुतानां राजाऽसि तस्मादेतदाचर ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुत्वान्) मरुतः प्रशस्ता मनुष्या विद्यन्ते यस्य सः (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (वृषभः) बलिष्ठः (रणाय) सङ्ग्रामाय (पिब)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (सोमम्) महौषधिरसम् (अनुष्वधम्) अनुकूलं स्वधान्नं विद्यते यस्मिँस्तम् (मदाय) आनन्दाय (आ) (सिञ्चस्व) (जठरे) उदरे (मध्वः) मधुरस्य (ऊर्मिम्) तरङ्गम् (त्वम्) (राजा) प्रकाशमानः (असि) (प्रदिवः) प्रकर्षेण विद्याविनयप्रकाशस्य (सुतानाम्) उत्पन्नानामैश्वर्यादीनाम् ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यदि विजयमारोग्यं बलं दीर्घमायुश्चेच्छेत्तर्हि ब्रह्मचर्य्यं धनुर्वेदविद्यां जितेन्द्रियत्वं युक्ताऽऽहारविहारञ्च करोतु ॥१॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजा व सूर्याच्या गुणाचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - हे राजा! जर तू विजय, आरोग्य, बल व दीर्घायु इ. ची इच्छा बाळगलीस तर ब्रह्मचर्य, धनुर्वेदविद्या, जितेन्द्रियत्व व नियमित आहार विहार कर. ॥ १ ॥